संस्कारों का महत्व : "आज के युग मे पारंपरिक मूल्यों की भूमिका " ( Importance of Culture of Manners : The role of traditional values in today's Era )
* संस्कारों का महत्व: " आज के युग में पारंपरिक मूल्यों की भूमिका "
आज का युग जहां हम निरंतर प्रगति की ओर बढ़ते जा रहे हैं, तीव्रता से आधुनिक शैली को अपना रहे हैं, जहां देश दुनिया में एक दूजे से होड़ के लिए जद्दोजहद जारी है वहीं एक सवाल मन में संकोच सा उत्पन्न करता है :-
: " कि आज हमारे संस्कारों में हम कहां है 😐?? "
ऐसे समय में यह विचार करना आवश्यक हो जाता है कि क्या हमारे संस्कार जो पीढ़ियों से हमारी पहचान का हिस्सा रहे, वही संस्कार आज भी प्रासंगिक है ।।
* परिवार और संस्कार :
परिवार यह समाज की सबसे छोटी इकाई है, पर आपको बतला दिया जाए कि संस्कारों के अधीन सबसे मुख्य किरदार यही परिवार ही रखता है, आज हम पुराने समय की ओर चलते हैं और परिवार और संस्कार के बीच का पहलू अपने जीवन के अनुभवों के आधार पर करते हैं आज मैं कुछ किस्से साझा करना चाहूंगा, मेरी उम्र आज 24 वर्ष है और इन्हीं 24 वर्षों के अंतराल में आधुनिक युग को तीव्रता से बढ़ते हुए देखा है।।
मेरा जन्म गांव में ही हुआ है मैं गांव के संस्कारों और अनुभव को भलीभांति जाना है, गांव के चौबारे पर बैठे वह बड़े बुजुर्ग जिन्होंने हमारी उम्र से ज्यादा तजुर्बा रखा है उनके पास बैठना कहानी, किस्से और बहुत से तौर -तरीकों से रूबरू होना यही जीवन का मुख्य अनुभव है, घर के सबसे बड़े और आदरणीय दादा-दादी ,पर मैंने अपने दादाजी का प्यार तो कभी नहीं पाया मेरे दादाजी का देहांत मेरे पापा की उम्र जब 13 वर्ष की थी तब ही हो गया था,तो दादा जी के प्यार से मेरा बचपन वंचित ही रहा है पर दादी जी, बड़े पापा, बुआ जी और मेरे पापा जिनसे संस्कार का वह अनमोल ज्ञान मैंने अर्जित किया है, जिससे आज भी इस तीव्रता से बढ़ती जीवन शैली में संस्कार से रहना मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण विषय लगता है संस्कार जिनसे हमारी ही नहीं हमारे माता-पिता की इज्जत भी दुगनी हो जाती है,
कहीं किसी सामाजिक कार्यक्रम में हमारे द्वारा किया गया बर्ताव हमारा ही नहीं हमारे माता-पिता और हमारे पूरे परिवार का चरित्र भी कभी-कभी निर्धारित करता है,
मैंने अपने अभी तक के निजी जीवन में सबसे ज्यादा मेरे लिए प्रेरणा स्त्रोत अपने पापा (पिताजी) को ही माना है।।
जो हमेशा से कर्मठ और जुझारू रहे उन्होंने जीवन की दौड़ में शून्य से आज तक का सफर बड़ी मेहनत से हासिल किया और अकेले अपने ही दम पर किया है जहां आज जमाने में संस्कार की बातें आती है तो उससे काफी हद तक आज की पीढ़ी पिछड़ चुकी है आज बड़े बुजुर्गों की बातें सुनना बच्चों को पसंद ही नहीं उनके लिऐ कहानी किस्से भी आज मोबाइल फोन बख़ूभी सुना रहा है उस बीच रील और शॉर्ट से बच्चों के दिमाग पर एक अलग ही असर पड़ रहा है और वह भी भागम भाग जीवन में संस्कारों से कई दूर निकलता चला जा रहा है।।
संस्कार (या) स्वतंत्रता : -
* संस्कार या स्वतंत्रता एक ऐसा प्रश्न है जो व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक मूल्यों के बीच संतुलन को दर्शाता है।।
आज की युवा पीढ़ी एक ऐसे दौर से गुजर रही है जहां परंपरागत संस्कारों और आधुनिक स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाना एक चुनौती बन गया है, आज के युवा तकनीकी शिक्षा और वैश्विक सोच के करण अधिक स्वतंत्र विचार वाले हैं, जो अपना फैसला खुद पसंद करते हैं ||
चाहे :- वह करियर, रिश्ते या जीवन शैली हो पुरानी संस्कार, रीति - रिवाजों और सामाजिक अपेक्षाओं के आधार पर जीवन जीने की सीख देती है।।
• विवाह :
जहां युवा पीढ़ी प्रेम विवाह या अंतरजाती विवाह को पसंद करती है वहीं बुजुर्ग पीढ़ी पारंपरिक विवाह प्रणाली को प्राथमिकता देती है ।।
• करियर :
जहां माता-पिता की चाह कुछ और, और बच्चों का गलत चीजों की ओर झुकाव जिसमें सोशल मीडिया मुख्य रोल अदा करता है।।
• रहन - सहन :
कपड़े पहनने से लेकर बोलचाल तक में स्वतंत्रता की चाह पारंपरिक सोच से टकराती है,
मर्यादा में रहकर भी खूबसूरत लग जा सकता है जो पूर्ण लिबास और व्यावहारिक हो पर आज का दौर जिसे फैशन के नाम पर बदन दिखाने जैसी सोच की ओर बढ़ा ले चला है ||
मुख्य संस्कारों का बचाव:
1) सामाजिक तौर पर :
संस्कार ही समाज को जोड़ने वाली डोर है वह हमें यह सीखते हैं कि बड़ों का सम्मान करें, छोटों का संरक्षण करें और समाज में मर्यादा बनाए रखें यदि यह मूल्य को गए तो सामाजिक ताना-बाना टूट सकता है।।
2) नैतिक और चरित्र निर्माण :
संस्कार व्यक्ति के चरित्र को मजबूत बनाते हैं वह हमें सच्चाई, ईमानदारी, कर्तव्यपरायणता और सहिष्णुता जैसे गुण सिखाते हैं, जो किसी भी इंसान की सबसे बड़ी पूंजी होती है।।
3) आत्मसंयम और अनुशासन :
यह व्यक्ति को अपनी इच्छाओं और क्रोध पर नियंत्रण रखने में मदद करता है यही आत्म संयम जीवन को संतुलित बनाए रखने में मददगार है और गलत राह पर जाने से रोकता है।।
4) परिवार के संबंधों को जोड़ने वाली कड़ी :
संस्कार ही वह सेतु है जो एक पीढ़ी को दूसरी से जोड़े रखते हैं और यह सिखलाते हैं कि परिवार केवल खून का रिश्ता ही नहीं बल्कि एक जिम्मेदारी और भावना भी है।।
5) संस्कृति की पहचान :
हर देश और समाज की अपनी एक पहचान होती है जो उसके संस्कारों से बनती है यदि हम अपने संस्कार भूल जाएं तो अपनी संस्कृति और जड़ों से कट जाएंगे।।
((निष्कर्ष))
* संस्कार कोई बोझ नहीं है संस्कार जीवन को दिशा देने वाला वह दीपक है जो आधुनिकता और स्वतंत्रता के इस युग में भी यदि संस्कारों को बचाकर रखा जाए तो व्यक्ति न केवल सफल बल्कि संतुलित और सम्माननीय जीवन जी सकता है।।
* मेरे शब्दों में कुछ त्रुटि (या) कुछ गलत शब्दों का भी अगर प्रयोग हुआ हो तो मुझे क्षमा करना ||
- धन्यवाद
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